हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने सरकारी स्कूलों में मिड-डे मील कर्मियों (mid-day meal workers) को बड़ी राहत दी है और उन्हें छुट्टियों के दौरान दो महीने का वेतन देने का भी आदेश दिया है। पहले सरकार उन्हें सिर्फ दस महीने का वेतन देती थी. मिड-डे मील वर्कर्ज के संघ ने हाईकोर्ट में मुकदमा दायर कर पूरे साल का वेतन देने की मांग की थी.
हाईकोर्ट की एकल पीठ ने संघ की याचिका को स्वीकारते हुए सरकारी स्कूलों में हजारों की संख्या में तैनात किए गए मिड-डे मील वर्कर्ज को 19 माह की बजाय 12 महीने का वेतन दिए जाने के आदेश दिए थे। इन आदेशों को सरकार ने खंडपीठ के समक्ष चुनौती दी थी, जिसे न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान और न्यायाधीश सुशील कुकरेजा की खंडपीठ ने खारिज कर दिया।
कोर्ट ने शिक्षा विभाग को आदेश दिए कि मिड-डे मील वर्कर्ज को पूरे साल का वेतन दे। सरकार का कहना था कि यह केंद्र सरकार की स्कीम है, इसलिए प्रदेश सरकार इस योजना के तहत अपने स्तर पर इन्हें पूरे साल का वेतन नहीं दे सकती।
12 महीनों के वेतन के हकदार है मिड-डे मील वर्कर
इस दलील को खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा कि जब प्रदेश सरकार अपने स्तर पर इन वर्कर्ज के वेतन को बढ़ा सकती है तो पूरे साल का वेतन क्यों नहीं दे सकती। याचिका में आरोप लगाया गया था कि शिक्षा विभाग प्रार्थी यूनियन के साथ भेदभाव कर रहा है। शिक्षा विभाग में कार्यरत गैर-शिक्षक कर्मचारियों को भी पूरे साल का वेतन दिया जाता है, लेकिन उन्हें 10 ही महीने का वेतन दिया जा रहा है। हाईकोर्ट ने अपने निर्णय में कहा कि शिक्षा विभाग मिड-डे मील वर्कर्ज के साथ भेदभाव नहीं कर सकता। इसलिए यह संविधान के अनुच्छेद 14 का सरासर उल्लंघन है। हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा सुनाए गए निर्णय का हवाला देते हुए कहा कि मिड-डे मील वर्कर्ज 10 महीनों की बजाय 12 महीनों के वेतन के हकदार हैं। कोर्ट ने इसे घृणित भेदभाव का मामला बताते हुए कहा कि जब शिक्षा विभाग स्कूलों में तैनात शिक्षकों और गैर-शिक्षकों को लाखों रुपए पूरे साल अदा करता है तो उस स्थिति में मिड-डे मील वर्कर्ज के साथ भेदभाव नहीं कर सकता।